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बदलाव की आहट
इस समय देश में भ्रष्टाचार मुक्ति की बयार चल रही है. नेता परेशान है. जिन्हे कल तक कुछ भी कला सफ़ेद करने पर कोई डर नहीं था, देश को जेब में रखकर घूमने की आदत थी.उन्हे आजकल नींद में चौकने की बीमारी हो गयी है. कानो में हर वक्त अन्ना – केजरीवाल की प्रतिध्वनि गूँज रही है. पता नहीं कब इस दुनाली का मुंह उनकी तरफ घूम जाये. सत्ता पक्ष हो या विपक्ष सभी के नेता आपस में कह रहे है कि न मैं तेरी खोलूं और न तू मेरी खोल. दिग्विजय सिंह ने खुले आम कह दिया है कि अटल आडवानी के खिलाफ मेरे पास पुख्ता सबूत है लेकिन बोलूँगा कुछ नहीं. मतलब साफ़ है कि यदि विपक्ष ने कांग्रेस पर वार किया तो मिसाइल हम पर भी रखी है. इसलिए दोनों मिलकर अन्ना केजरीवाल का मुकाबला करो.
फिर देर किस बात कि थी, टीम केजरीवाल के सदस्यों पर भ्रष्टाचार के आरोप झोंक दिए गए. अनी कोहली को केजरीवाल कि प्रेस वार्ता में हंगामा करने को भेज दिया गया. खोखले सवालों कि झड़ी लगा दी गयी लेकिन इन सबसे केजरीवाल का मनोबल तोड़ने में नाकाम रहे. पता नहीं किस मिटटी का बना है केजरीवाल. राजनीति का हर अस्त्र उससे टकराकर मोथरा हो जाता है.
जिस दिन अन्ना के दूसरे आमरण अनशन को सरकार ने कोई ध्यान न देकर खुट्टल करने कि रणनीति अपनाई और अन्ना को अचानक अपना आन्दोलन ख़त्म करना पड़ा उसी दिन केजरीवाल ने समझ लिया था कि गंदगी (राजनीति ) में उतरे बिना गंदगी साफ़ नहीं कि जा सकती. कांटा निकालने के लिए कांटे का ही सहारा लेना पडेगा.तभी उन्होंने राजनीति में उतरने का ऐलान कर दिया. हांलाकि अन्ना बाद में इस रास्ते से अलग हो गए लेकिन केजरीवाल के साथ देश का तमाम युवा एकजुट होने लगा. अन्ना ने भी अपनी टीम का विस्तार कर दूसरे छोर से भ्रष्ट नेताओं पर हल्ला बोलने कि व्यूह रचना शुरू कर दी. नेता हक्के बक्के थे, कहने लगे हम तो पहले ही कहते थे कि केजरीवाल कोई क्रांतिकारी नहीं, सत्ता का भूखा नेता है. मसलन नेता तो होता ही गन्दा है. पुराने राजनीति के दिग्गजों को यह हजम नहीं हो रहा था कि केजरीवाल नेता बनकर उनकी सफ़ेद कपड़ों में छिपी काली जैकिट (कालाधन ) दूसरों को दिखने लगे. अब नेता यह दिखाने में जुट गए है कि मेरी जैकिट दूसरे से कम काली है. केजरीवाल को मिलते व्यापक समर्थन से राजनीतिक हलकों में सन्नाटा पसर गया है. एक नवम्बर को केजरीवाल फरुक्खाबाद जा रहे है देश के कानून मंत्री की चुनौती का जवाब देने. उन्होंने कोई भी सुरक्षा लेने से मना कर दिया है लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानो ने लाठियां लेकर उनके साथ चलने का ऐलान कर दिया है. सरकार की सांस हलक में अटकी पड़ी है. आने वाले दिनों में केजरीवाल की आंधी कुछ और दिग्गजों के तम्बू हिलाएगी यह सोच कर भारतीय राजनीति सहमी पड़ी है. सत्ता पक्ष हो या विपक्ष सभी किसी नए बदलाव की आहट से सन्न है. पिछली बार मात्र ६५ करोड़ के बोफोर्स घोटाले की आंच में पूरी सरकार झुलस गयी थी , इस बार तो १.८६ लाख करोड़ के कोयला घोटाले, रोबर्ट वाड्रा जमीन घोटाले, डा. जाकिर हुसैन ट्रस्ट के विकलांग अनुदान घोटाले तथा महाराष्ट्र के सिचाई घोटाले में तो लाखों करोड़ों की परते खुल रही है लेकिन सरकार और विपक्ष बेशर्मी का लबादा ओढे मौन साधे है, यह एक खतरनाक संकेत है.
आज बदलाव की मशाल थामे सधे क़दमों से जिस प्रकार आम जन आगे बढ़ रहा है और देश को लूटने वाले भ्रष्ट नेता पीछे हट रहे है तो इससे तो यही लगता है कि पीछे हटते-हटते दीवार से टकराना निश्चित है, जहाँ से कोई रास्ता नहीं बचेगा. अब उम्मीद कि जानी चाहिए कि देर से ही सही लेकिन भ्रष्टाचार के अँधेरे में स्वच्छ राजनीति का दीपक जरूर जलेगा.
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