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क्या अन्ना केजरीवाल से ज्यादा कारगर सिद्ध होंगे ?

dil ki baat
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भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद कर लोगो की आशाओं का केंद्र बने अन्ना हजारे अब तीस जनवरी से भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ जन जागरण करने के लिए तैयारियों में जुटे है। वे देश का भ्रमण करेंगे और ग्राम स्तर तक भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिए जनता का आह्वान करेंगे। इसके लिए उन्होंने एक नई टीम गठित कर भ्रष्ट सरकार से जूझने हेतु ताल ठोक दी है। किसी समय अन्ना के सबसे भरोसेमंद और दायाँ हाथ कहे जाने वाले अरविन्द केजरीवाल भी इसी निशाने पर लगातार प्रहार कर रहे हैं और काफी हद तक अपने लक्ष्य में कामयाब भी हो रहे हैं। सवाल उठता है कि अन्ना हजारे ऐसा क्या नया करने जा रहे हैं कि उन्हे केजरीवाल के तीर खुट्टल नज़र आ रहे हैं। हांलाकि लक्ष्य दोनों का एक ही है।परन्तु जिस तरह अन्ना केजरीवाल को ईमानदार और कर्मठ बताते हुए भी उन्हे सत्ता का लोभी बताने से नहीं चूक रहे है उससे अन्ना हजारे की असहजता की स्थिति साफ़ परिलक्षित हो रही है। यह स्थिति उनकी प्रतिष्ठा के अनुरूप भी नहीं लगती।
सब जानते हैं कि जब अन्ना ने अपनी पुरानी टीम के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का ऐलान किया था तो सारा देश आंदोलित हो उठा था, सरकार तक सिहर उठी थी। लेकिन दूसरी बार जब अन्ना ने जंतर मंतर पर आन्दोलन छेड़ा , टीम सदस्यों ने भूख हड़ताल तक शुरू की मगर सरकार में कोई हलचल नहीं दिखी तब अचानक अन्ना हजारे को बिना कारण बताये आन्दोलन खत्म करना पड़ा। सारा देश सन्न रह गया , लोग सोचने को मजबूर थे कि कहीं अन्ना पस्त तो नहीं हो गए। हांलाकि अन्ना ने बाद में नई रणनीति बनाकर आन्दोलन छेड़ने का भरोसा दिलाया। अन्ना ने खुद मंच से आन्दोलन का स्वरुप बदलकर एक सशक्त राजनीतिक विकल्प देने का उदघोष किया। पूरी टीम अन्ना राजनीतिक विकल्प के मंथन में जुट गयी। तभी अचानक अन्ना ने चुप्पी साधते हुए खराब स्वास्थ्य का हवाला देकर खुद को अलग कर लिया। अरविन्द केजरीवाल और सदस्य हक्के बक्के थे लेकिन उन्होने हिम्मत नहीं हारी और अन्ना को ही अपना पूज्य बताते हुए सशक्त राजनीतिक विकल्प का ताना बाना बुनना शुरू कर दिया।
टीम अन्ना अब टीम केजरीवाल में तब्दील हो गई और भ्रष्टाचार के मामले उजागर करने लगी। देश का एक बड़ा तबका केजरीवाल के साथ हो लिया। अन्ना की ख़ामोशी अन्ना का दर्द बयाँ कर रही थी। तब अन्ना ने चुप्पी तोडते हुए एक नई टीम बनाने का ऐलान कर दिया। किरण बेदी पहले से ही केजरीवाल से दूर होकर अन्ना के साथ आ चुकीं थी। उन्हे केजरीवाल से नाराजगी सिर्फ इस लिए थी क्योकि केजरीवाल सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष पर भी हमले कर रहे थे और दोनों को भ्रष्टाचार में सहभागी बता रहे थे। सेना से रिटायर हुए जनरल वी के सिंह को टीम में शामिल किया गया। जनरल सिंह की छवि एक ईमानदार और कर्मठ फौजी की रही है लेकिन विवादों से नाता भी रहा है। सार्वजनिक जीवन में सक्रिय होने की जल्दबाजी ने लोगो को उनपर ऊँगली उठाने का मौका दे दिया। उनका निर्णय भले ही सम्वैधानिक बाध्यताओं से परे हो लेकिन नैतिकता की कसौटी पर प्रश्न चिन्ह जरूर लगता है। सरकार द्वारा जनता को लूटने का आरोप लगाकर तथा संसद को भंग करने की मांग रखकर उन्होंने उसी व्यवस्था को कटघरे में खड़ा किया है जिसके वे कुछ समय पहले तक हिस्सा थे। संसद का घेराव करने का उनका निर्णय अभी अभी रिटायर हुए जनरल के लिए शोभा नहीं देता। जनरल सिंह का हरयाणा के पूर्व मुख्य मंत्री ओम प्रकाश चौटाला के साथ मंच पर खड़े होकर भाषण देना क्या उनकी राजनीतिक महत्व्कान्क्षा को नहीं दर्शाता ?
अन्ना का आन्दोलन राजनीति से परहेज करते हुए कितनी दूरी तय कर पायेगा और भ्रष्ट व्यवस्था के बहाव को कहाँ तक रोक पायेगा यह तो भविष्य ही बतायेगा, बेहतर हो केजरीवाल सरीखे समर्पित व्यक्तियों को एकजुट कर प्रदूषित व्यवस्था के परिवर्तन का शंखनाद किया जाए। यह एक सत्य है कि जब तक संसद में बैठे स्वार्थी और भ्रष्ट नेताओं को हटाकर राष्ट्रहित की सोच वाले समर्पित लोग संसद में नहीं पहुचेंगे तब तक भ्रष्टाचार की इस काई को साफ़ करना एक छलावा है। यह तभी हो सकता है जब लोकतांत्रिक तरीके से राजनीति में उतरकर प्रदूषित राजनीतिक दलों का विकल्प तैयार हो ताकि जनता वक़्त आने पर उनको आईना दिखा सके।

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