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अगर एग्जिट पोल के नतीजे सही बैठते हैं तो आम आदमी पार्टी की सरकार दिल्ली में बनने जा रही है . आज किसी शायर की वो पंक्तियाँ याद आ रही हैं कि “बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी.” इस चुनाव के भी दूरगामी और गहरे परिणाम होंगे . भाजपा के नये नवेले चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह के माथे पर बल पड़ना स्वाभाविक है. मदमस्त झूमते भाजपाइयों को यह अहसास भी होगा कि दिल्ली वाले आकर्षक भाषणों एवं नारों से नहीं, काम करने वाले जमीनी नेताओं की परख करना भी जानते है. भाजपा को इस चुनाव ने एकसाथ कई सन्देश दिए हैं. एक तो यदि उनके कर्मठ कार्यकर्ताओं या नेताओं की उपेक्षा कर किसी बाहरी व्यक्ति को उनपर थोपा जाएगा तो वो इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे . दूसरा सिर्फ लच्छेदार भाषणों से दिल्ली वालों को गुमराह नहीं किया जा सकता. उनकी मूलभूत परेशानियों को समझना भी पड़ेगा . व्यक्तिगत हमले करना, उनपर कीचड उछालना और द्वेष की भावना से काम करना बंद करना पड़ेगा. दिल्ली के पूर्व मुख्य मंत्री को गणतन्त्र दिवस समारोह का न्योता तक ना भेजना एक निहायत ही तुच्छ मानसिकता का परिचायक था . भाजपा को ये भी सीखना होगा कि अगर दिल्ली के लोगों का दिल जीतना है तो दिल्लीवासियो की समस्यायों पर मंथन करें , भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को समझे और अपने कर्मठ पार्टीजनों को पूरा सम्मान दे .
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