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आज़ादी के बाद दिल्ली के राजनीतिक इतिहास में यह पहला मौका होगा जब विधान सभा में विपक्ष सिर्फ ३ सीटों तक सिमट कर रह गया हो . ऐसा भी पहली बार हुआ है कि कांग्रेस पार्टी का एक भी नुमाइंदा विधान सभा में नहीं दिखेगा. यह भी तथ्य है कि किसी पूर्व मुख्य मंत्री ने जिस तारीख़ को अपना पद छोड़ा हो उसी तारीख़ को अगले साल दुबारा मुख्यमंत्री बना हो. ऐसा भी पहली बार हो रहा है कि महज़ डेढ़ साल से भी कम समय में एक जनांदोलन से बनी साधारण सी पार्टी ने सारी दिग्गज राष्ट्रीय पार्टियों को धूल चटाते हुए ६५ प्रतिशत वोटों से दिल्ली की सत्ता हथियाई हो. हमेशा से भाजपा के गढ़ रहे कृष्णा नगर सीट पर पहली बार भाजपा हारी हो. एक बात और , ये भी एक दिलचस्प सत्य है कि जिस शख्स ने जनता का थप्पड़ खाया हो , जिसे काली स्याही से नहलाया भी गया हो लेकिन फिर भी बिना नाराज हुए जन समस्याओं से जूझता रहा हो, अपने किसी भी प्रतिद्वंदी को अपशब्द ना बोला हो, उसे जनता ने ही दिल्ली की गद्दी पर बैठा कर इतिहास रच दिया हो .
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